Types of induction motor | Working of induction motor | Three phase induction motor | Induction motor pdf | Single phase induction motor | Induction motor price | What is slip in induction motor | An induction motor works with | What is the electrical degree of 6 pole stator motor?
Introduction of Motors (कैसे मोटर की उत्पति हुई ):
- 1889 में टेसला तथा फिरारीस (Ferraris) ने बहुकलीय (polyphase) धाराओं को प्राप्त करने की विधि के सन्दर्भ में एक शोध पत्र प्रकाशित किया था। तत्पश्चात इन्होंने 1891 में फ्रेंकफोर्ट प्रदर्शनी (Frankfort exhibition) में एक क्रूड (crude) त्रिकलीय मोटर को प्रदर्शित किया। 1893 में दोलिवो दोबरोवोल्सकी (Dalivo Dobrowolsky) ने वितरित स्टेटर कुण्डलन तथा पिंजरी रोटर संरचना वाली मोटर को बनाया। वर्तमान में प्रयुक्त प्रेरण पिंजरी मोटर (Induction cage motor) दोबरो वोल्सकी मोटर के समान है। स्लिपरिंग (Slipring) मोटर का विकास 19वीं शताब्दी (Century) के प्रारम्भ में हुआ। तत्पश्चात इस प्रकार की मोटर का विकास एवं उपयोग निरन्तर तीव्र गति से हुआ। .
- सामान्यतः विद्युत शक्ति का यांत्रिक शक्ति में रूपान्तरण विद्युत मोटर के घूर्णनशील भाग में होता है। प्रेरण मोटर में रोटर विद्युत शक्ति को चालन (Conduction) द्वारा प्राप्त न करके प्रेरण (Induction) द्वारा प्राप्त करते है। रोटर इस विद्युत शक्ति को यांत्रिक शक्ति में परिवर्तित करता है इसलिए इस मोटर को प्रेरण मोटर कहते है। इन दिनों इस प्रकार की A.C. मोटरों का प्रयोग सर्वाधिक होता है क्योंकि
- प्रेरण मोटर अन्य प्रकार की मोटर की अपेक्षा सस्ती होती है।
- इनकी संरचना सरल (Simple) तथा मजबूत (rugged) होती है।
- इनको चालू करना सरल तथा सुगम है।
- इनके अनुरक्षण (maintenance) की कम आवश्यकता होती है।
प्रेरण मोटरें त्रिकलीय तथा एक कलीय दोनों प्रकार की होती है। त्रिकला प्रेरण मोटरों का प्रयोग मुख्यतया औद्योगिक क्षेत्रों में किया जाता है जबकि एक कलीय प्रेरण मोटरों का प्रयोग घरेलू उपकरणों जैसे- पंखा (Fan), रेफ्रिजरेटर (Refrigerator), वाशिंग मशीन (Washing Machine) आदि में किया जाता है।
Construction of Induction motor (प्रेरण मोटर की संरचना) :
प्रेरण मोटर के दो मुख्य भाग होते हैं :
- स्थिर भाग जिसे स्टेटर (stator) कहते है।
- घूमने वाला भाग जिसे रोटर (Rotor) कहते है।
1 Stator (स्टेटर) :
- स्टेटर सिलिकन स्टील परतों (laminations) से बना एक खोखला बेलन होता इसके आन्तरिक भाग पर बने खांचों (Slots) में चित्र A के अनुसार त्रिकलीय कुण्डलन रखी जाती है। स्टेटर क्रोड स्टेटर फ्रेम पर आधारित (supported) होती है।
|
- तीन एक कलीय कुण्डलन एक-दूसरे से विद्यतरोधित होती है तथा इन्हें परस्पर 120 विद्युत डिग्री के अन्तर पर रखा जाता है। इन कुण्डलनों को स्थायी रूप से स्टार या डेल्टा में संयोजित किया जा सकता है या तीनों कुण्डलन के 6 टर्मिनलों को टर्मिनल बॉक्स पर लाकर आवश्यकता अनुसार स्टार या डेल्टा में संयोजित किया जा सकता है मोटर की गति के अनुसार कुण्डलन द्वारा स्टेटर में ध्रुव (poles) बनाए जाते है।
2 Rotor (रोटर) :
रोटर दो प्रकार के होते हैं
- Squirrel cage rotor (पिंजरी रोटर)
- Wound rotor (कुण्डलित रोटर)
इन दिनों प्रयुक्त 90% प्रेरण मोटरों में रोटर पिंजरी प्रकार का प्रयोग किया जाता हैं क्योंकि ये सरल (simple) तथा मजबूत (rugged) होते है। पिंजरी रोटर क्रोड सिलिकन स्टील की पट्टिकाओं से बना ठोस बेलन होता हैं जिसके बाहरी पृष्ठ पर खांचें बनाये जाते है तथा इन खांचों में एल्युमिनियम या ताम्र की छड़े चित्र A के अनुसार रखी जाती है। इन छड़ों (bars) के सिरों को ताम्र वलय द्वारा लघुपथित कर दिया जाता है। रोटर के खांचे प्राय: शाफ्ट के समानान्तर नहीं बनाए जाते बल्कि विषमित (skew) बनाए जाते है। रोटर के खांचों को विषमित बनाने से स्टेटर तथा रोटर के बीच चुम्बकीय जकड़ (Magnetic cogging) तथा चुम्बकीय भनभनाहट (Magnetic hum) कम हो जाती है। जिस प्रेरण मोटर में पिंजरी रोटर होता हैं उसको पिंजरी प्रेरण मोटर (Squirrel cage induction motor) कहते है।
कुण्डलित रोटर की क्रोड भी पटलित (laminated) होती है। इसके खांचों में स्टेटर की तरह ही कुण्डलन की जाती है। रोटर पर कुण्डलन स्टेटर ध्रुवों के बराबर ध्रुवों के लिए की जाती है। रोटर कुण्डलन स्टार में संयोजित होती है। इस कुण्डलन के खुले सिरे चित्र B के अनुसार तीन स्लिप रिंग से जुड़े हुए होते है। ये स्लिप रिंग रोटर की शाफ्ट पर स्थित होती है लेकिन शाफ्ट से विद्युतरोधित होती है। ब्रुशों (Brushes) के द्वारा संयोजन (Connections) टर्मिनल बॉक्स पर लाये जाते है। जिस प्रेरण मोटर में कुण्डलित रोटर प्रयुक्त किया जाता है उसे कुण्डलित या स्लिप रिंग प्रेरण मोटर (Slip ring induction motor) कहते है।
i . Squirrel cage induction motor :-
- इसे प्रारम्भ करने के लिए न तो प्रारम्भन प्रतिरोध,न ही लघुपथ करने के साधन या स्लिप वलय या ब्रुश गियर होता है। इसे स्टार-डेल्टा स्टार्टर या ऑटो ट्रांसफार्मर स्टार्टर द्वारा प्रारम्भ किया जाता
- स्टेटर तो एक जैसा है। परन्तु रोटर पिंजरी आकार का होता है। इसके खाँचों में ताम्र की छड़ें लगी रहती हैं जो कि रोटर के दोनों सिरों पर सुचालक अन्त वलय द्वारा लघुपथित रहती हैं।
- प्रारम्भन शक्ति गुणक का मान निम्न (low) होता है।
- प्रारम्भन बल आघूर्ण का मान बहुत कम होता है।
- ताम्र हानि का मान अपेक्षाकृत कम होता है।
- अपेक्षाकृत दक्षता का मान अधिक होता है।
- मोटर के रख-रखाव पर कम व्यय करना पड़ता
- मोटर अधिक मजबूत तथा कम मूल्य की होती
- शीतलन व्यवस्था अच्छी होती है।
- उस स्थान पर प्रयोग की जाती है जहाँ पर कम शक्ति लेनी हो तथा गति नियन्त्रण की आवश्यकर्ता न होती हो।
ii .Wound rotor/Slip Ring induction motor:-
- इसे प्रारम्भ करने के लिए प्रारम्भन प्रतिरोधा लघु पथ करने के साधन, स्लिप वलय या ब्रश गियर की आवश्यकता होती है।
- स्टेटर तो पिंजरी रूपी प्रेरण मोटर जैसा ही होता है। रोटर में कुण्डलन की जाती है। उसका संयोजन सदैव स्टार में किया जाता है। उसके | दूसरे सिरे को सॉफ्ट पर लगे स्लिप रिंग से सम्पर्कित किया जाता है।
- प्रारम्भन शक्ति गुणक का मान अपेक्षाकृत अधिक होता है।
- प्रारम्भन बल आघूर्ण का मान अपेक्षाकृत अधिक होता है तथा इसे भार पर चलाया जाता है।
- ताम्र हानि का मान अधिक होता है।
- दक्षता का मान कम होता है।
- मोटर के रख-रखाव का व्यय अधिक तथा कठिन होता है।
- मोटर अपेक्षाकृत कम मजबूत तथा महँगी होती
- उस स्थान पर प्रयोग की जाती है, जहाँ अधिक प्रारम्भन बल आघूर्ण की आवश्यकता होती है। जैसे लिपट, रोलिंग मिल, आटा चकी आदि।
Working principle of a three phase induction motor (त्रिकलीय प्रेरण मोटर की कार्यप्रणाली):-
जब विकलीय प्रेरण मोटर के स्टेटर को विकलीय प्रदाय से संयोजित किया जाता है तो रोटर व स्टेटर के मध्य वायु अन्तराल में नियत मान का घूर्णनकारी फ्लक्स उत्पन्न होता है। यह फ्लक्स तुल्यकाली चाल | (N. = 120 f/P) से घूमता है। यहां प्रदाय आवृति तथा P स्टेटर पर स्थित ध्रुवों की संख्या है।
रोटर पर स्थित धारा चालकों द्वारा यह फ्लक्स कटता है और फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियमानुसार इनमें वि. |वाहक बल प्रेरित होता है। चूंकि रोटर के धारा चालक लघुपथित होते है जिससे इनमें धारा प्रवाहित होने लगती है।लेन्ज के नियमानुसार इनमें धाराओं की दिशा इस प्रकार होना चाहिए कि ये उस कारण का विरोध करे जिसके कारण ये उत्पन्न हुई। यहां पर इसका कारण चुम्बकीय फ्लक्स तथा रोटर के मध्य सापेक्ष गति है। इसलिए रोटर । इस सापेक्ष गति को कम करने के लिए घूर्णनकारी फ्लक्स की दिशा में घूमने लगता है।
यदि आपको पोस्ट पसंद आई तो like share and comments जरूर करे। सबसे पहले पोस्ट पाने के लिए ईमेल subscription करना न भूले.
धन्यवाद
0 टिप्पणियाँ
Please do not enter any spam link in the comment box