राजस्थान के लोक-देवता | Rajasthan Ke Lok Devta | Rajasthan Ki Kala Sanskriti


राजस्थान के पांच पीर -

"पाबू हडबू राम दे, मांगलिया मेहा। पांच्यू पीर पधारज्यों, गोगा जी जेहा"

1. पाबूजी
2. हडबूजी
3. मेहा जी
4. रामदेव जी
5. गोगा जी


 (1) पाबूजी राठौड़ -

  • जन्म स्थान- कोलुमण्ड
  • पिताजी का नाम- धांधल
  • माताजी का नाम - कमलादे
  • पत्नी का नाम - फूलमदे/सुप्यारदे (अमरकोट की राजकुमारी)
  • घोडी का नाम- केशर कालमी।
  • मित्र- चान्दा, डामा (भील भाई)
  • देवल नामक चारण महिला की गायों को बचाने के लिए अपने फेरों के बीच से उठ कर आये तथा (बहनोई) जिन्दराव खीची (जायल) के खिलाफ लड़ते हुए देचू (जोधपुर) में मारे गये।
  • चैत्र कृष्ण अमावस्या को कोलूमण्ड में पाबू जी का मेला भरता हैं।
  • पाबू जी को ऊंटो के देवता व प्लेग रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता हैं।
  • ऊंट पालने वाली राईका । रैबारी जाति इन्हें अपना आराध्य देव मानती हैं।
  • आशिया मोड़जी ने 'पाबू प्रकाश' नामक पुस्तक लिखी हैं।

  • पाबू जी की फड़ भील जाति के भोपे रावणहत्था वाद्ययंत्र के साथ बांचते हैं। - पाबू जी की फड़ सबसे लोकप्रिय फड़ हैं।

  • पाबू जी के भजन (पवाड़े) माट वाद्ययंत्र के साथ गाये जाते हैं।


(2) रामदेव जी तंवर -

  • जन्म स्थान- उण्डूकाश्मीर (बाड़मेर)
  • पिताजी का नाम- अजमालजी
  • माताजी का नाम - मेणादे
  • पत्नी का नाम- नेतल दे (अमरकोट की राजकुमारी)
  • रामदेव जी एक समाज सुधारक थे, उन्होंने जात-पात का भेदभाव मिटाने व दलित उद्धार का कार्य किया।

  • रामदेव जी एक अच्छे कवि थे और इनका ग्रंथ हैं- चौबीस बाणियां

  • रामदेव जी ने कामडिया पंथ शुरू किया था। कामडिया पंथ की महिलाएं तेरह-ताली नृत्य करते हैं।
  • रामदेव जी के मेघवाल भक्तों को रिखिया कहते हैं।
  • रामदेव जी को पीरों का पीर कहते हैं। रामदेवजी को विष्णु कृष्ण का अवतार माना जाता हैं।
  • रामदेव जी के घोड़े का नाम - लीलो / लीला।
  • रामदेव जी के पगले पूजे जाते हैं।
  • रामदेव जी के ध्वज - नेजा
  • जागरण - जमो।


(3) गोगाजी: -

  • जन्म स्थान - दद्रेवा (चुरू)
  • इन्होनें महमूद गजनवी के साथ युद्ध किया था, महमूद गजनवी ने इन्हें जाहरपीर (साक्षात् पीर) कहा।
  • अपने मौसेरे भाईयों अरजन-सरजन के खिलाफ गायों की रक्षा के लिए लड़ते हुए गोगामेड़ी (हनुमानगढ़) नामक स्थान पर इनकी मृत्यु हुयी।

  • गोगाजी को सांप रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता हैं

  • गोगाजी का मंदिर (थान) खेजड़ी वृक्ष के नीचे बनाया जाता हैं।

  • ददरेवा के मंदिर को शीर्षमेड़ी व गोगामेड़ी के मंदिर को धुर मेड़ी कहते हैं।

  • गोगामेड़ी वाला मंदिर मकबरा शैली में बना हुआ हैं, इसके शीर्ष पर बिस्मिल्लाह लिखा हुआ हैं।

  • खिलेरियों की ढाणी (सांचौर) में गोगाजी की ओल्डी बनी हुई हैं।


(4) हडबूजी सांखला -

  • रामदेव जी के मौसरे भाई थे।
  • जन्म स्थान - भूण्डेल (नागौर)
  • इन्होनें राव जोधा को मंडौर विजय का आशीर्वाद दिया व एक कटार भेंट की , इसलिए राव जोधा ने मंडोर विजय के बाद इन्हें 'बेंगटी' गांव दिए। जहां इनका मुख्य मंदिर बना हुआ हैं।
  • इस मीदर का निर्माण जोधपुर महाराजा अजीतसिंह ने करवाया।
  • हड़बू जी अपनी बैलगाड़ी से गायों के लिए चारा लाते थे। - इसलिए मंदिर में इनकी बैलगाड़ी की पूजा की जाती हैं।
  • शगुन विचार ग्रन्थ- हडबू जी ने लिखा।


(5) मेहाजी मांगलिया -

  • मुख्य मंदिर- बापिणी (जोधपुर) - मेला- कृष्ण जन्माष्टमी।
  • इनके घोड़े का नाम किरड काबरा हैं।
  • इनके भोपो की वंशवृद्धि नहीं होती हैं।


(6) तेजाजी -

  • जन्मस्थान - खरनाल (नागौर) (जाट परिवार में जन्म हुआ)
  • पत्नि - पेमलदे
  • ससुराल - पनेर (अजमेर)
  • लाछा गूर्जरी की गायों को बचाने के लिए तेजाजी सुरसुरा गांव में घायल हो गये तथा सांप के काटने से मृत्यु हो गयी।
  • सर्प रक्षक देवता के रूप में पूजा की जाती हैं।
  • तेजाजी को 'काला-बाला' का देवता कहते हैं।
  • किसान हल जोतते हुए तेजा गाता हैं।
  • 7 दिसम्बर 2010 को तेजाजी पर डाक टिकट जारी किया गया।
  • तेजाजी की घोड़ी का नाम - लीलण
  • तेजाजी के भोपों को घोड़ला कहते हैं।


(7) देवनारायण जी -

  • पिता का नाम - सवाई भोज
  • देवनारायण बगड़ावत गूर्जर परिवार से सम्बन्धित थे।
  • आसींद (भीलवाड़ा) देवमाली (अजमेर), जोधपुरिया (टोंक) में इनके मुख्य पूज्य स्थल हैं।
  • इनके मंदिर में प्रतिमा के स्थान पर ईटों की पूजा की जाती हैं।
  • नीम के पत्ते चढ़ाये जाते हैं। (औषधि का देवता)
  • देवनारायण जी की फड़ गूर्जर जाति के भोपे 'जन्तर' वाद्य के साथ पढ़ते (बाचते) हैं।
  • देवनारायण जी की फड़ सभी लोकदेवताओं में सबसे लम्बी फड़ हैं।
  • लक्ष्मी कुमारी चुण्डावत ने 'बगडावत' नामक कहानी लिखी।
  • देवनारायण जी की फड़ पर डाक-टिकट जारी किया गया हैं।
  • भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को मेला भरता हैं।
  • विष्णु का अवतार माना जाता हैं।


(8) मल्लीनाथ जी -

  • मारवाड़ के राठौड़ राजा।
  • राजधानी - मेवानगर ।
  • मल्लीनाथ जी भविष्यवक्ता थे।
  • गुरू का नाम - उगमी सी भाटी ।
  • बाड़मेर के तिलवाड़ा गांव में होली के दूसरे दिन मल्लीनाथ पशु मेला लगता हैं।
  • पत्नी का नाम - रूपा दे (ये भी लोकदेवी हैं, इनका मंदिर तिलवाड़ा के पास मालाजाल गांव में बना हुआ)


(9) तल्लीनाथ जी -

  • वास्तविक नाम - गोगादेव राठौड़ - शेरगढ़ (जोधपुर) के राजा।
  • पांचोटा (जालौर) में इनका मुख्य मंदिर हैं।
  • इन्हें ओरण का देवता माना जाता हैं।


(10) देव बाबाः -

  • नंगला जहाज (भरतपुर) में मुख्य मंदिर हैं।
  • भाद्रपद शुक्ल पंचमी और चैत्र शुक्ल पंचमी को इनकी पूजा की जाती हैं।
  • देव बाबा पशु चिक्त्सिक थे।
  • इन को खुश करने के लिए सात ग्वालों को भोजन करवाना होता हैं।
  • पशुपालक समाज इन्हें आराध्य देव मानता हैं।


(11) बिग्गाजी: -

  • बीकानेर के रीड़ी गांव में एक जाट परिवार में जन्म हुआ।
  • गायों की रक्षा के लिए लड़ते हुए मारे गये।
  • जाखड़ समाज इन्हें अपना कुलदेवता मानते हैं।


(12) जुन्झार जी: -

  • सीकर जिले के इमलोहा गांव में जन्म हुआ।
  • सीलोदड़ा गांव में गायों की रक्षा करते हुए मारे गये।
  • स्थालोदड़ा गांव में 5 पत्थर की मूर्तियां लगी हुयी हैं। (दुल्हा दुल्हन तथा तीन भाईयों की मूर्तियां)
  • मेला- रामनवमी।


(13) झरड़ाजीः -

  • पाबूजी के भतीजे थे।
  • कोलूमण्ड (जोधपुर) व सिमुंदडा (बीकानेर) में इनके मुख्य मंदिर हैं।
  • झरडाजी का एक अन्य नाम 'रूपनाथ' भी मिलता हैं।
  • हिमाचल प्रदेश में बालकनाथ के रूप में पूजा की जाती हैं।


(14) खेतलाजीः -

  • मुख्य मंदिर - सोनाणा (पाली) में।
  • हकलाने वाले बच्चो का इलाज किया जाता हैं।


(15) मामदेवजी -

  • इन्हें बरसात का देवता कहा जाता हैं।
  • इनके मंदिर नहीं होते हैं, बल्कि गांव के शहर इनके तोरण की पूजा की जाती हैं।
  • भैंसे की बलि दी जाती हैं।


(16) आलमजी: -

  • धोरीमन्ना (बाड़मेर) में इनका मेला भरता हैं।
  • धोरीमन्ना को 'घोड़ो का तीर्थस्थल' कहते हैं।
  • आलम जी जैतमालोत राठौड़ थे।


(17) वीरफत्ताजी: -

  • सांथू (जालौर) गांव में इनका मुख्य मंदिर हैं।
  • गायों की रक्षा करते हुए मारे गये।
  • मेला- सांथू गांव में भाद्रपद शुक्ल नवमी को।


(18) हरिराम जी: -

  • नागौर के झोरड़ा गांव में इनका मंदिर हैं।
  • सांप की बांबी की पूजा की जाती हैं।
  • मेला- भाद्रपद शुक्ल- पंचमी


(19) इंगजी-जवाहरजी: -

  • सीकर जिले के बाठोठ - पाटोदा गांव के थे।
  • अमीरो से लूटकर गरीबों में उनका धन वितरित कर दिया करते थे।
  • इन्होनें अग्रेजो की नसीराबाद छावनी लूट ली थी।
  • मुख्य सहयोगी- लोहटजी जाट, करणा जी मीणा ।

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