Synchronous मोटर क्या होता हैं ?
तुल्यकालिक मोटर या सिन्क्रोनस मोटर प्रत्यावर्ती धारा AC Supply से चलने वाली विद्युत मोटर है। इसका नाम तुल्याकालिका मोटर या सिन्क्रोनस मोटर इस कारण है क्योंकि इसके रोटर की घूर्णन गति Rotating speed of rotor ठीक-ठीक उतनी ही होती है जितनी स्टेटर में निर्मित घूर्णी चुम्बकीय क्षेत्र (rotating magnetic field) की गति होती है।
जिस तरह दिष्ट धारा जनित्र DC generator और दिष्ट धारा मोटर DC Motor की संरचना में विशेष अन्तर नहीं होता और एक मशीन जनित्र तथा मोटर दोनों का कार्य कर सकती है उसी तरह प्रत्यावर्तक और तुल्यकाली मोटर की संरचना समान है। मशीन को यान्त्रिक आदान Mechanical input देने पर वह प्रत्यावर्ती धारा उत्पन्न करके प्रत्यावर्तक की तरह कार्य करती है और जब उसे प्रत्यावर्ती प्रदाय से आदान दिया जाता है तो वही मशीन तुल्यकाली मोटर की तरह कार्य करके यान्त्रिक शक्ति उत्पन्न करती है।
परन्तु तुल्यकाली मोटर दिष्ट धारा मोटर की भांति स्वप्रवर्तक (Self-starting) नहीं होती है। अत: मशीन को पहले प्रत्यावर्तक की भांति चलाते है और उसे प्रथम चालक (prime mover) से विसंयोजित (Disconnect) करने पर यह तुल्यकाली मोटर की तरह कार्य करती है।
इसके आर्मेचर को त्रिकला प्रदाय 3 Phase Supply देने पर आर्मेचर में घूर्णमान फलक्स Rotating flux उत्पन्न होता है। इसके क्षेत्र field को दिष्ट धारा DC Current से उत्तेजित किया जाता है। आर्मेचर और रोटर के ध्रुवों की संख्या सदैव समान रखते हैं।
यदि रोटर चलता है तो वह सिर्फ तुल्यकाली चाल पर ही चलता है, अन्यथा नहीं चलता अतः तुल्यकालिक मोटर की चाल नियमन शून्य होती है। इस मोटर की चाल speed केवल प्रदाय आवृति frequency बदलने से ही बदली जा सकती है।
इस मोटर को उत्तेजन excitation परिवर्तन करके किसी भी शक्ति गुणक पर चलाया जा सकता है। उच्च चाल के लिए द्विध्रुव बेलनाकार रोटर अन्यथा समुन्नत (salient) ध्रुव प्रकार का ही रोटर बनाया जाता है।
Construction of synchronous motor (सिंक्रोनस मोटर की संरचना)
(a) Stator (स्टेटर) :-
मोटर के स्थिर भाग को स्टेटर कहते है। इसे सिलिकॉन स्टील के पटियों (laminations) द्वारा निर्मित किया जाता है। प्रत्येक पटलन दूसरे पटलन (lamination) से विद्युतरोधी वार्निश द्वारा पथक होती है। स्टेटर के भीतरी भाग में खाँचे (slots) बने होते हैं । इन खांचो के भीतर चालक (conductor) रखे जाते हैं, जिन्हें प्रत्यावर्ती धारा वि.वा.बल EMF दिया जाता है। क्रोड को पट्टलित (laminated) बनाने तथा पट्टलिनों के मध्य विद्युतरोधी वार्निश लगे रहने के कारण भंवर धाराएँ Eddy current losses कम उत्पन्न होती हैं, जिसके फलस्वरूप लौह हानियाँ iron loss कम होती हैं तथा स्टेटर गर्म नहीं हो पाता है।
(b) Rotor (रोटर):-
स्टेटर के मध्य में घूमने वाले भाग को रोटर कहा जाता है। रोटर को एक शाफ्ट में फिट किया जाता है। प्रायः रोटर पर उत्तेजन कुण्डली excitation coil लगाई जाती है। इस कुण्डली को स्लिपरिंगों slip ring द्वारा दिष्टधारा DC Supply दी जाती है तथा Required वांछित मान के विद्युत चुम्बकीय ध्रुव उत्पन्न किये जाते हैं।
मोटर के रोटर में निम्नलिखित दो प्रकार के ध्रुव (pole) संरचनाएँ होती हैं :
(i) Salient Pole Rotor क्या होता हैं (समुन्नत ध्रुव) :-
समुन्नत ध्रुव, विद्युत चुम्बकीय ध्रुव (electromagnetic. pole) की भाँति उभरे हुए होते हैं तथा इन्हें शाफ्ट से पूर्ण रूप से कस दिया जाता है। यह क्रमशः उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव के रूप में कुण्डलित किये जाते हैं तथा सारी कुण्डलियाँ coils श्रेणीबद्ध होती हैं। इनको शाफ्ट पर लगे दो slip ring द्वारा दिष्ट धारा प्रदाय दी जाती हैं।
इन रोटर का घेरा बड़ा Diameter रखा जाता है, परन्तु लम्बाई length कम रखी जाती हैं यह वजनी होता है तथा इसके चक्र प्रति मिनट RPM कम होते हैं । समुन्नत ध्रुव रोटर में कम से कम छः ध्रुव POLE तथा अधिक से अधिक चालीस ध्रुव होते हैं । यह रोटर अधिक शक्ति उत्पन्न करने के लिए उपयोग किये जाते हैं। इनकी सतह के भीतर अवमन्दन कुण्डलन (damping winding) की जाती है। यह कुण्डलित ध्रुव दिष्ट धारा मशीन के ध्रुवों जैसे होते हैं।
(ii) Non-salient Pole Rotor क्या होता हैं (असमुन्नत ध्रुव):-
जब किसी तुल्यकाली मोटर के रोटर को अधिक गति पर घुमाना होता है तब उसके लिए बेलनाकार रोटर (cylindrical rotor) की परिधि कम होती है परन्तु लम्बाई अधिक होती है। ऐसी अवस्था में रोटर का रूप बेलनाकार ही उपयोग किया जाता है। इस रोटर में कम से कम दो ध्रुव या अधिक से अधिक चार ध्रुवों के लिए कुण्डलन किया जाता है।
यह ध्रुव क्रमशः उत्तरी तथा दक्षिणी होते हैं तथा इनके कुण्डलन श्रेणीबद्ध होते हैं जिन्हें दो Slip ring द्वारा दिष्ट धारा प्रदाय दी जाती है। रोटर की परिधि के केवल 2/3 भाग पर खाँचे काटे जाते हैं । परिधि का 1/3 भाग ध्रुवों के लिए छोड दिया जाता है। यह समन्नत ध्रुव रोटर की तुलना में वजन में हल्के होते हैं। इन्हें अधिक शक्ति उत्पादन के लिए उपयोग में लाया जाता है तथा इनकी चाल भी अधिक होती हैं।
Working Principle of synchronous motor (सिंक्रोनस मोटर का कार्य सिद्धान्त):-
माना कि एक दो ध्रुव (Ns, एवं Ss) त्रिकला स्टेटर है जिसके ध्रुव तुल्यकाली चाल से दक्षिणावर्त (Clockwise) दिशा में घूम रहे है और रोटर स्थिर अवस्था में है।
चित्र 4.1 (i) अनुसार किसी क्षण Ns, A पर और Ss, B पर है तो समान ध्रुवों के प्रतिकर्षण Repulsion के कारण रोटर वामावर्त (Anticlockwise) दिशा में घूमने का प्रयत्न करेगा। आधा चक्र समय पश्चात चित्र 4.1 (ii) अनुसार प्रत्येक ध्रुव Ns, और Ss, एक ध्रुव पिच के बराबर दूरी तय करेगा और Ns, B पर तथा Ss,A पर स्थित होगा। इस स्थिति में विपरीत ध्रुवों के पास होने के कारण रोटर पर आकर्षण बल Attraction force के कारण वह दक्षिणावर्त (Clockwise) दिशा में घूमने का प्रयत्न करेगा।
अतः स्टेटर ध्रुव निरन्तर शीघ्र प्रत्यावर्ती बलघूर्ण अनुभव करेंगे परन्तु रोटर के जड़त्व तथा शीघ्र प्रत्यावर्ती बलघूर्ण के कारण रोटर स्थिर रहता है इस प्रकार तल्यकाली मोटर का प्रारम्भन बलघूर्ण Starting torque शून्य होता है।
माना कि चित्र 4.1 (iii) अनुसार रोटर दक्षिणावर्त दिशा में स्टेटर फलक्स के वेग से घूम रहा है और जब स्टेटर का Ns, ध्रुव A पर पहुँचेगा तब रोटर का S ध्रुव भी ठीक इसी समय B पर पहुँच जाएगा अर्थात स्टेटर के Ns ध्रुव के साथ रोटर ध्रुव S और स्टेटर के Ss ध्रुव के साथ रोटर ध्रुव N की स्थिति लगातार एक साथ बदलती रहती है । अतः स्टेटर और रोटर के विपरीत ध्रुवों के कारण दोनों परस्पर आकर्षण बल अनुभव करेंगे।
इस लिए मशीन को सर्वप्रथम एक प्रत्यावर्तक की तरह चलाकर उसके प्रथम चालक को विसंयोजित (Disconnect) करते है क्योंकि रोटर दक्षिणावर्त दिशा में स्टेटर फलक्स के वेग से चलता है इसलिए बाह्म यान्त्रिक साधन से सम्बन्ध विच्छेदित करने पर भी वह आकर्षण बल अनुभव करेगा और उसके ध्रुव स्टेटर ध्रुवों से अन्तः ग्रंथित (Interlocked) होंगे और रोटर अपनी प्रारम्भिक चाल बनाए रख पाएगा।
सिंक्रोनस मोटर से संबंधित विशेष बिंदु :-
(i) तुल्यकालिक मोटर की आवृति स्थिर होने पर वह स्थिर चाल पर चलेगी।
(ii) तुल्यकालिक मोटर समुन्नत ध्रुव Salient Pole Rotor प्रकार की होती है पंरतु प्रत्यावर्तक समुन्नत और असमुन्नत दोनों प्रकार के हो सकते है।
(iii) Ns = 120*f/P सूत्र से तुल्यकालिक मोटर की चाल ज्ञात करते हैं।
(iv) तुल्यकालिक मोटर में धारा का अवयव (component) प्रेरित EMF के फेज में होने पर( IF current phase in EMF) तुल्यकालिक मशीन जनित्र GENERATOR की तरह कार्य करती है और धारा का अवयव प्रेरित EMF के विपरीत फेज में होने पर मशीन मोटर की तरह कार्य करती है।
(v) तुल्यकालिक मोटर के आर्मेचर में विद्युत वाहक बल प्रत्यावर्ती फलक्स के आर्मेचर चालकों से गुथित होने के कारण प्रेरित होता है।
(vi) तुल्यकालिक मोटर में भार बढने पर चाल और प्रेरित EMF में भी कोई अन्तर नहीं आता परन्तु आर्मेचर और रोटर ध्रुवों में विस्थापन बढ़ जाता है जिसके फलस्वरूप प्रेरित EMF और प्रयुक्त वोल्टता विपरीत फेज में न होकर कला अन्तर PHASE DIFFRENCE (180 - α) पर विस्थापित हो जाते हैं जिसके परिणाम स्वरूप मोटर में परिणामी EMF Er उत्पन्न होत है जो भार बढ़ने पर बढ़ता है।
Characteristics of Synchronous Motor (तुल्यकालिक मोटर के अभिलक्षण):-
तुल्यकालिक मोटर के निम्नलिखित अभिलक्षण है:
(1) यह एक स्थिर तुल्यकालिक चाल | Ns = 120*f/P पर ही चलती है जोकि भार परिवर्तन से नहीं अपितु आवृति और ध्रुव परिवर्तन से बदली जा सकती है।
(2) इसका प्रारम्भ बलघूर्ण शून्य होता है अतः यह स्वप्रवर्तक नही self start है। इसके प्रवर्तन self starting हेतु इसे प्रदाय से संयोजित करने से पूर्व किसी बाह्य साधन external starting method से तुल्यकालिक चाल तक लाया जाता है।
(3) यह शक्ति गुणक के बड़े परास में काम करती है। निम्न उत्तेजन पर यह पश्चगामी शक्ति गुणक lagging power factor पर और उच्च उत्तेजन पर अग्रगामी शक्ति गुणक leading power factor पर कार्य करती है और इन दोनों स्थिति में यह उच्च आर्मेचर धारा लेती है। इस व्यवहार द्वारा प्राप्त अभिलक्षण 'V' वक्र कहलाता है।
(4) भार बढ़ाने पर मन्दक कोण α बढ़ता है जिससे भार के समंजन के लिए मोटर धारा I बढ़ती है परन्तु मोटर का शक्ति गुणक घटता है और धारा के मान का प्रतिसंमजन (Counter balance) घटे हुए शक्ति गुणक से होता है। इस स्थिति के बाद मोटर भार उठाने में असमर्थ होकर रूक जाती है।
Starting Method of synchronous motor(तुल्यकालिक मोटर के स्टार्टिंग तरीके ) :-
तुल्यकाली मोटर स्वचालित नही होती है अतः इसे चालू करने के लिए यांत्रिक शक्ति अर्थात प्राइम मूवर की आवश्यकता होती है। तुल्यकाली मोटर को चालू करने के लिए निम्न विधियाँ अपनायी जाती
- By Means of Pony Motor (पोनी मोटर द्वारा)
- By Means of D.C. Motor (DC मोटर द्वारा)
- Self Starting Method (स्वचालन विधि)
(1) By Means of Pony Motor :-
3-फेज इन्डक्शन प्रकार की तथा तुल्यकाली मोटर की तलना में अधिक घर्णन गति रखने वाली मोटर. पोनी मोटर कहलाती है। पोनी मोटर के स्टेटर ध्रुव का सख्या, तुल्यकाली मोटर के स्टेटर धृव की संख्या में एक जोडा कम रखी जाती है। ध्रुव की संख्या कम होने के कारण ही पोनी मोटर की घूर्णन गति तुल्यकाली मोटर की घूर्णन गति से अधिक हो जाती है । जब पोनी मोटर द्वारा चालित तुल्यकाली मोटर की घूर्णन गति उसकी तुल्यकाली गति के बराबर हो जाती है। तो पोनी मोटर को बन्द कर दिया जाता है और चुम्बकीय लॉकिंग के कारण तुल्यकाली मोटर अपनी तुल्यकाली गति पर चलती रहती है। ठीक इसी समय उत्तेजक द्वारा तुल्यकाली मोटर के रोटर ध्रुव को पूर्ण डी.सी. वोल्टेज प्राप्त होना प्रारम्भ हो जाता है।
(2) By Means of D.C. Motor :-
इस विधि मे तुल्यकाली मोटर को प्रारम्भिक घूर्णन गति प्रदान करने के लिए डी.सी. कम्पाउण्ड मोटर प्रयोग की जाती है। तुल्यकाली मोटर के स्टेटर की 3-0, AC सप्लाई से संयोजित कर DC तुल्यकाली मोटर चालू कर दी जाती है। जब तुल्यकाली मोटर की घूर्णन गति उसकी तुल्यकाली गति के बराबर हो जाती है तो एक्साइटर के द्वारा रोटर पोल्स को पूर्ण DC वोल्टेज प्राप्त होने लगता है। ठीक इसी समय DC मोटर बन्द कर दी जाती है और चुम्बकीय लॉकिंग के कारण तुल्यकाली मोटर अपनी तुल्यकाली गति पर चलती रहती है।
(3) Self Starting Method : -
मोटर को self start करने के लिये दो तरीके प्रयोग किये जाते हैं:
(i) Damper Winding
(ii) As slip ring induction motor
(i) Damper Winding :-
इस विधि में रोटर के ध्रुवों के सिरों पर ताम्र की मोटी पत्तियाँ अन्दर डाली जाती हैं जिन्हें रोटर के दोनो तरफ ताम्र रिंगो द्वारा शॉर्ट कर दिया जाता है इस winding को डैम्पर वाइडिंग कहते है मोटर को स्टार्ट करने से पहले इसकी क्षेत्र कुण्डलन को डीसी सप्लाई से अलग कर देते है। अब स्टेटर को 3-0 सप्लाई के साथ जोडा जाता है। जिससे उसके अन्दर घूर्णनशील चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। तब मोटर एक पिंजरी प्रेरण मोटर की तरह स्टार्ट होती है। जब मोटर की गति लगभग तुल्यकाली स्पीड के बराबर होती है। तब फील्ड winding के लिये DC सप्लाई को switch on कर देते है। इस प्रकार दोनो का मैग्नेटिक फील्ड इन्टरलॉक होकर मोटर एक तुल्यकाली मोटर की तरह काम करने लगती है।
इस अवस्था में डैम्पर winding के अन्दर कोई भी emf पैदा नही होती है। मोटर स्थिर गति और अधिक दक्षता वाली होती है।
(ii) As slip ring induction motor की तरह :-
मोटर को Slip Ring मोटर की तरह स्टार्ट करके कम करंट पर अधिक स्टार्टिग टार्क ले सकते है। इस प्रकार की मोटर एक साधारण स्लिपरिंग मोटर की तरह होती है। जिसके साथ DC उत्तेजक भी लगा होता है।
मोटर को बाहर लगे हुए रेजिस्टेन्स के साथ जोडकर चलाते हैं। जब मोटर अपनी स्पीड पर आ जाती है। तो रोटर winding को DC supply उत्तेजक के सारा दी जाती है । तब मोटर अपनी तुल्यकाली गति पर आ जाती है।
What is the electrical degree of 6 pole stator motor?
आज आपको Synchronous Motor के बारे मे कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दी गई । यदि आपको पसंद आई हो ओर आपको कोई भी सवाल जवाब हो तो क्रपिया comments करके जरूर बताए ।
धन्यवाद
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