राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां - Rajasthan Ki Pramukh Lok Deviya - Rajasthan Ki Lok Deviya

 

Rajasthan ki lok deviyan/राजस्थान की लोक देवियां
Rajasthan ki lok deviyan

1. करणी माता (Karani Mata):

  • बीकानेर से 35 किमी. दूर देशनोक नामक स्थान पर चारणी देवी करणी माता का मन्दिर है।
  • बीकानेर राज्य के समस्त राठौड़ शासकों की कुल देवी रही करणी माता के संकेतों के अनुसार राव बीका ने बीकानेर राज्य की स्थापना की। 
  • सब जोधाजी के राजा बनने के बाद जोधपुर के किले मेहरानगढ़ की नींव करणी जी द्वारा रखी गई। 
  • इनके मन्दिर में चूहों की अधिक संख्या के कारण इन्हें 'चूहों की देवी' भी कहा जाता है। करणी माता के मन्दिर में सफेद चूहेकाबा' कहलाते हैं, चारण समाज इन्हें अपना पूर्वज मानते हैं।
  • नवरात्रों में करणी माता का मेला देशनोक में लगता है।

2. कैला देवी(Kela Devi) :

  • करौली के पास त्रिकूट पर्वत पर कैला देवी का भव्य मन्दिर है।
  • कैला देवी करौली के यदुवंशी राजवंश की कुल देवी है।
  • एक मान्यता के अनुसार वासुदेव-देवकी की कन्या सन्तान को कंस ने मारना चाहा परन्तु वह अतध्यान हो गई तथा वह जोगमाया के रूप में कैला देवी कहलायी।
  • करौली में चैत्र मास की शुक्ला अष्टमी को त्रिकूट पर्वत पर विशाल मेला लगता है।
  • मेले में आने वाले भक्त लांगुरिया गीत' गाते हैं।

3. शिला देवी (Shila Devi Mata Temple):

  • आमेर राज्य के शासक मानसिंह प्रथम ने 16 वीं शताब्दी में पूर्वी बंगाल पर विजय के उपरान्त शिला देवी को लाकर आमेर के राजभवनों में स्थापित कर दिया।
  • शिला देवी जयपुर राजवंश की कुलदेवी मानी जाती हैं।
  • शिलादेवी की प्रतिमा अष्टभुजी भगवती महिषासुरमर्दिनी की मूर्ति के रूप में है।
  • नवरात्रों में यहां मेला लगता है।

4.तनोट देवी(Tanot Mata) :

  • जैसलमेर से 120 किमी. दूर भारत-पाक सीमा पर तनोट में तनोट देवी का मन्दिर है जो जैसलमेर के पूर्व भाटी शासकों की देवी रही हैं। 
  • भारत-पाक सीमा पर स्थित यह मन्दिर सैनिकों के लिए शक्ति साधना स्थल प्रेरक केन्द्र रहा है। 
  • तनोट देवी को 'सैनिकों की देवी' कहा जाता हैं। 
  • 1965 में भारत-पाक युद्ध में इस मन्दिर पर फेंके गए सभी बम निष्क्रिय रहे। अतः सीमा सुरक्षा बल के जवान इसकी विशेष पूजा अर्चना करते हैं। 
  • इसे 'थार की वैष्णो देवी' भी कहा जाता है।

5. जीण माता (Jeen Mata):

  • शक्ति स्वरूपा भगवती जीण माता का भव्य मन्दिर सीकर से 15 किमी. दूर रेवासा नामक गांव के दक्षिण में पर्वत श्रेणियों के मध्य है। 
  • जीण माता चौहानों की कुलदेवी हैं। 
  • जीण माता के मन्दिर का निर्माणं पृथ्वीराज प्रथम के शासन के काल में हुआ था।  
  • जीण माता का मेला प्रतिवर्ष चैत्र और आश्विन माह में नवरात्रों में लगता है। 

6. सकराय माता (शाकम्भरी माता shakambari Mata):

  • शाकम्भरी या सकराय माता शेखावाटी अंचल का प्रमुख श्रद्धा, आस्था तथा भक्ति का केन्द्र है। यह उदयपुरवाटी (झुंझुनू) के समीप सुरम्य घाटियों में. स्थित है।
  • सकराय माता खण्डेलवालों की कुलदेवी हैं। 
  • अकाल पीड़ित जनता को बचाने के लिए इस देवी ने फल, सब्जियाँ, कन्द मूल उत्पन्न किये। इसी कारण इसे 'शाकम्भरी माता' भी कहते हैं। 
  • शाकम्भरी का एक मन्दिर सांभर में तथा दूसरा उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में हैं।

7. सचियां माता sachiya Mata :

  • सचियां माता का प्रसिद्ध मन्दिर ओसिया (जोधपुर) में एक पहाड़ी पर स्थित है।
  • सचियां माता ओसवालों की कुलदेवी हैं।
  • सचियां माता का मन्दिर परमार राजकुमार उपलदेव ने बनवाया था। 
  • सचियां माता महिषासुरमर्दिनी का ही सात्विक रूप हैं।

8. त्रिपुरा सुन्दरी Tripura sundari Mata:

  • बाँसवाड़ा से 18 किमी. दूर तलवाड़ा के पास प्राचीन मन्दिर है।
  • सिंह पर सवार भगवती अष्टादश भुजा की मूर्ति यहां स्थापित है जो त्रिपुरा सुन्दरी, तरतई माता त्रिपुरा महालक्ष्मी के रूप में जानी जाती हैं।
  • त्रिपुरा सुन्दरी का यह शक्ति पीठ सम्राट कनिष्क से पूर्व का बना हुआ है जो सैलानियों का आकर्षण केन्द्र है।
  • पांचाल जाति के लोग त्रिपुरा को कुलदेवी मानते हैं। 

9. स्वांगिया देवी:

  • जैसलमेर के चन्द्रवंशी यादव भाटी राजवंश की कुलदेवी के रूप में पूज्य  
  • जैसलमेर के राज चिह्न में स्वांग (भाला) को मुड़ा हुआ देवी के हाथ में दिखाया गया है। 
  • जैसलमेर यादव वंशी भाटी देवी के कृपा से उत्तर-पश्चिमी सीमा पार से होने वाले आक्रमणों को रोकते थे। अतः जैसलमेर किले को 'उत्तर भड़ किवाड़ कहा जाता है। 
  • राज चिह्न के उपर शकुन चिड़िया बैठी दिखाई है जो देवी का प्रतीक हैं। 

10. आई माता Aai Mata:

  • आई माता का मन्दिर बिलाड़ा (जोधपुर) में है। इस मन्दिर के दीपक से केसर टपकती है। 
  • आई माता के भक्त सिरवी जाति (कृषक जाति) के लोग हैं जो आई माता को अपनी कुलदेवी मानते है।
  • आई माता का मन्दिर 'बडेर' कहलाता है। जहां हर महीने शुक्ला द्वितीया को पूजा होती है। 
  • सिरवी लोग आई माता के मन्दिर को 'दरगाह' कहते हैं।

11. शीतला माता shitala Mata:

  • शीतला माता का मन्दिर सवाई माधोसिंह ने चाकसू (जयपुर) में शील की दूंगरी पर बनाया था।
  • यह देवी बच्चों की चेचक से रक्षा करती हैं।
  • यहां प्रतिवर्ष शीतला अष्टमी को गधों का मेला लगता है।

12. नारायणी देवी Narayani Devi Mata:

  • अलवर जिले की राजगढ़ तहसील के बरवा दूंगरी की तलहटी में नारायणी माता का मन्दिर है।
  • यह मन्दिर 11 वीं सदी में प्रतिहार शैली में बना हुआ है।
  • नारायणी देवी नाई जाति की कुलदेवी है।

13. आमजा माता Aamaja Mata:

  • उदयपुर से 80 किमी. दूर केलवाड़ा के पास भीलों की देवी आमजा का भव्य मंदिर है।

14. आशापुरा माता Ashapura mata:

  • आशापुरा देवी का मन्दिर पोखरण के पास है जो बिस्सा जाति की कुलदेवी हैं।

15. भदाणा माता :

  • कोटा से 5 किमी दूर भदाणा नामक स्थान पर मन्दिर है।
  • मूंठ पीड़ित व्यक्ति का उपचार करती हैं।

16. बड़ली माता :

  • चित्तौड़गढ़ जिले में छीपों के आकोला में बेड़च नदी के किनारे मन्दिर हैं।

17. लटियाल माता :

  • इसका मन्दिर लोद्रवा (फलौदी) में है। यह कलालों की कुलदेवी हैं।

18. जिलाणी माता :-

  • जिलानी माता इसका मन्दिर बहरोड़ (अलवर) कस्बे में है।

19. घेवर माता :-

  • घेवर माता का मन्दिर सती मन्दिर है जो राजसमंद झील की पाल पर स्थित है।

20. राणी सती (दादीजी) :-

  • झुंझुनूं में राणी सती का विशाल संगमरमरी मन्दिर हैं।

21. दधिमती माता :-

  • नागौर जिले के गोठमांगलोद गांव में उत्तर भारत की प्राचीनतम मन्दिरों में से एक है।

22. कालका माता :-

  • चित्तौड़ दुर्ग में कालका माता का विशाल गुम्बद वाला प्राचीन मन्दिर है।
  • कालिका देवी सूर्यवंशी गहलोतों की कुलदेवी है।

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